आज का सुविचार आत्मदीप्ति से समाजदीप्ति की साधना

*”आत्मदीप्ति से समाजदीप्ति की साधना”

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मानव जीवन में अभिप्रेत परिवर्तन का अवतरण तभी संभव होता है जब व्यक्ति अपने आचरण, विचार एवं व्यक्तित्व को आलोकित प्रतिमान रूप में प्रस्तुत करने का साहस करे। केवल उपदेशात्मक प्रवचन या सैद्धान्तिक घोषणाएँ समाज की गति को परिवर्तित नहीं कर सकतीं; इसके विपरीत, जीवंत उदाहरण की दीप्ति ही जनमानस को प्रेरित करती है। जब व्यक्ति स्वयं को आदर्श की मूर्त छवि बनाता है, तब उसका अस्तित्व मौन उपदेश के रूप में समाज को मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस प्रकार आत्मप्रकाशित चरित्र ही वास्तविक पथप्रदर्शक का कार्य करता है।

 

परिवर्तन की प्रक्रिया सहज एवं क्षणिक नहीं होती, वरन् यह निरन्तर साधना, धैर्य एवं तपश्चर्या की अपेक्षा करती है। एकल व्यक्तित्व का उज्ज्वल आदर्श, क्रमशः समाज के विविध स्तरों को प्रभावित कर, सामूहिक रूपान्तरण की आधारशिला रखता है। अतः यदि मानवता को प्रगति की दिशा में अग्रसर होना है, तो प्रत्येक चेतन प्राणी को अपने भीतर उस आलोक का संवर्धन करना होगा, जो न केवल स्वयं को प्रकाशित करे, अपितु संपूर्ण समाज के लिए भी दिशा-सूचक दीपस्तम्भ सिद्ध हो।

 

. “सनातन”

*(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)*

पंकज शर्मा (कमल सनातनी)

*जीने की कला – 15/09/2025*

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