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सत्य का स्वभाव : विद्रोह और विमर्श

. *”सत्य का स्वभाव : विद्रोह और विमर्श”*

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मित्रों सत्य का चरित्र सदैव ही एक विचित्र विरोधाभास का पर्याय रहा है। मनुष्य अपनी सुविधा एवं दृष्टिकोण के अनुरूप उसे आकार देना चाहता है, किंतु सत्य अपनी मौलिकता में न तो किसी व्याख्या का दास है, न ही किसी सामूहिक मान्यता का बंधक। वह उस जलप्रवाह के समान है, जो शिला से टकरा कर भी अपनी गति को नहीं रोकता, बल्कि नए मार्ग का अन्वेषण करता है।

 

सत्य को ग्रहण करना वस्तुतः आत्ममोह से परे जाना है। यह आत्मसंघर्ष का प्रथम सोपान है, जहाँ व्यक्ति को अपनी पूर्वधारणाओं, पक्षपातों एवं मोहक कल्पनाओं का परित्याग करना पड़ता है। यही कारण है कि सत्य प्रायः विद्रोही प्रतीत होता है—क्योंकि वह यथास्थिति को चुनौती देता है एवं सुविधाजन्य असत्य के आवरण को भेद डालता है।

 

वस्तुतः सत्य वही देख पाता है, जो साहसपूर्वक अपनी चेतना को निर्मल दर्पण की भाँति स्वच्छ कर सके। अतः यह कहना समीचीन है कि सत्य न तो किसी की निजी संपत्ति है एवं न ही किसी विचारधारा का बंधक; वह तो एक शाश्वत ज्योति है, जो अपने अन्वेषक से आत्मबल एवं निष्ठा की माँग करता है।

 

. “सनातन”

*(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)*

पंकज शर्मा (कमल सनातनी)

*जीने की कला – 19/09/2025*

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